सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा ने गुरुवार को संसद में कई विधेयकों के पारित होने के दौरान चर्चा और बहस की कमी पर आलोचना की है।
बार बेंच के लेख के अनुसार गुरुवार को न्यायमूर्ति मिश्रा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति कमलेश्वर नाथ द्वारा लिखित पुस्तक, “यर्निंग फॉर राम मंदिर एंड फुलफिलमेंट” पुस्तक लॉन्च में पहुंचे थे जंहा न्यायमूर्ति मिश्रा ने टिप्पणी की किया और कहा कि स्थापित संसदीय मानदंडों से यह विचलन राम राज्य के आदर्शों के विपरीत है।
राम राज्य, हिंदू पौराणिक कथाओं में प्रभु राम के शासन की विशेषता का एक युग है, जो न्यायपूर्ण शासन और सामाजिक सद्भाव की अवधि का प्रतीक है जंहा प्रभु राम धर्मों या गरीब और अमीर के बीच भेदभाव नहीं करते थे।
न्यायमूर्ति मिश्रा नें कहा, "आजकल हमे साफ़ दिख रहा हैं कि संसद काम नहीं कर रही है; विधेयक बिना चर्चा और बहस के पारित हो रहे हैं, राम राज्य के दौरान ऐसा नहीं होता था।" न्यायमूर्ति मिश्रा ने इस बात पर प्रकाश डालते हुए यह भी कहा की भारतीय संविधान उस अवधि के दौरान सन्निहित सिद्धांतों और लोकाचार को बनाए रखने की आकांक्षा रखता है। इसलिए, यह भारतीय संविधान सभी धर्मों की चिंता करता है और सभी के लिए न्याय की मांग करता है, राम राज्य का मतलब ही है सभी के लिए विकास और समानता है। यह गरीब और अमीर में कभी भी अन्तर नहीं करता है।'
उन्होंने कहा की,"हम सभी को राम की तरह जीने और बनने का लक्ष्य रखना चाहिए, जो मानवाधिकारों के रक्षक हैं। सनातन धर्म में सभी धर्मों को आत्मसात करने की शक्ति है। यह इसकी ताकत है, कमजोरी नहीं। हमारा संविधान राम राज्य के इन मूल्यों की रक्षा करता है।" उन्होंने एक समतावादी समाज का भी आह्वान किया जो जाति से विभाजित न हो।
न्यायमूर्ति मिश्रा नें बोला, "आजकल, हम जाति से विभाजित हैं; भगवान राम जातिविहीन समाज में विश्वास करते थे।" न्यायमूर्ति मिश्रा ने यह भी रेखांकित किया कि राम का संदेश सभी के लिए शांति है और दर्शकों को याद दिलाया कि भारत ने कभी किसी अन्य देश पर आक्रमण नहीं किया या किसी भी संस्कृति को नष्ट नहीं किया। “हम दुनिया में मौतें और विनाश देख रहे हैं; शांति के लिए राम का संदेश अब और भी अधिक प्रासंगिक है। भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया या किसी भी संस्कृति को नष्ट नहीं किया। हम उन शांतिपूर्ण देशों में से हैं जो अपनी सांस्कृतिक विरासत के अनुरूप अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करते हैं।”
न्यायमूर्ति मिश्रा नें आज की दुनिया के सामने आने वाली पर्यावरणीय चिंताओं को भी छुआ। “आजकल हम प्लास्टिक के उपयोग के माध्यम से वनस्पतियों और जीवों को नष्ट कर रहे हैं। ये राम राज्य में नहीं हुआ, जो पूरे विश्व में फैल जाए तो फायदेमंद होगा। एक दिन ऐसा जरूर होगा कि सभी लोग प्रेम और सद्भाव से रहेंगे और सभी संवैधानिक लक्ष्य हासिल होंगे…हम सभी आज अपने पर्यावरण को लेकर चिंतित हैं,”
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा का बयान सुनने के बाद हम कह सकते हैं कि वह भारत के युवाओं और सभी कानून के छात्रों के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं, क्यूंकि उनके विचार केवल भारतीय संस्कृति को नहीं मानव अधिकार को भी साथ लेकर चलने का आदर्श प्रदान करती हैं।